सिंह की दहाड़ से,
दुश्मन का दिल देहल रहा,
हवा का रुख़ बदल रहा,
हवा का रुख़ बदल रहा.
ज़हरीले पेड की,
जड़ें उखड़ने लगी,
रोगी समाज को,
संजीवनी आज दिख रही.
चिथड़ों में पड़ा स्वाभिमान,
फिर आज उबर रहा,
जवान के बलिदान को,
सम्मान फिर वो-कौन दे रहा.
युवा के जोश को,
सु-दिशा कोई दे रहा,
किसान के परिश्रम को,
मुस्कान वोही दे रहा.
अंधेरे भरे मेरे देश में,
फिर रोशनी-सी भर रही,
विकास का सपना लिए,
पुरुषार्थ की लो फिर जल रही.
हवा का रुख़ बदल रहा,
हवा का रुख़ बदल रहा.
-- Neetha
दुश्मन का दिल देहल रहा,
हवा का रुख़ बदल रहा,
हवा का रुख़ बदल रहा.
ज़हरीले पेड की,
जड़ें उखड़ने लगी,
रोगी समाज को,
संजीवनी आज दिख रही.
चिथड़ों में पड़ा स्वाभिमान,
फिर आज उबर रहा,
जवान के बलिदान को,
सम्मान फिर वो-कौन दे रहा.
युवा के जोश को,
सु-दिशा कोई दे रहा,
किसान के परिश्रम को,
मुस्कान वोही दे रहा.
अंधेरे भरे मेरे देश में,
फिर रोशनी-सी भर रही,
विकास का सपना लिए,
पुरुषार्थ की लो फिर जल रही.
हवा का रुख़ बदल रहा,
हवा का रुख़ बदल रहा.
-- Neetha
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